ओंकार को जानों - ओशो
जिस दिन व्यक्ति
अपने को विश्व के साथ एक अनुभव करता है उस दिन जो ध्वनि बरसती है वह है ओंकार। जिस
दिन व्यक्ति का आकार से बंधा हुआ आकाश निराकार आकाश में गिरता है, जिस दिन व्यक्ति की छोटी-सी सीमित लहर
असीम सागर में खो जाती है, उस दिन जो संगीत का, ध्वनि का, मूल-मंत्र का अनुभव होता है, उसी का नाम ओंकार है। ओंकार जगत की परम
शांति में गूंजने वाला संगीत है।
एक संगीत जिसे पैदा करने के लिए हमें ध्वनि पैदा करनी पड़ती है। ध्वनि पैदा करने का अर्थ है कि कहीं कोई चीज घर्षण करेगी। जैसे मैं अपनी ताली बजाऊं तो आवाज पैदा होगी। तो हमारा जो संगीत है वह संघर्ष का संगीत है। होंठ से होंठ टकराते हों, चाहे कंठ के भीतर की मांसपेशियां टकराती हों, लेकिन हमारी सभी ध्वनियां टकराहट से पैदा होती हैं। ओंकार उस ध्वनि का नाम है, जब सब व्याघात खो जाते हैं। सारा जगत विराट शांति में लीन हो जाता है, तब भी उस सन्नाटे में एक ध्वनि सुनाई पड़ती है। वह शून्य का स्वर है। उस क्षण सन्नाटे में जो ध्वनि गूंजती है, उसी का नाम ओंकार है।
एक संगीत जिसे पैदा करने के लिए हमें ध्वनि पैदा करनी पड़ती है। ध्वनि पैदा करने का अर्थ है कि कहीं कोई चीज घर्षण करेगी। जैसे मैं अपनी ताली बजाऊं तो आवाज पैदा होगी। तो हमारा जो संगीत है वह संघर्ष का संगीत है। होंठ से होंठ टकराते हों, चाहे कंठ के भीतर की मांसपेशियां टकराती हों, लेकिन हमारी सभी ध्वनियां टकराहट से पैदा होती हैं। ओंकार उस ध्वनि का नाम है, जब सब व्याघात खो जाते हैं। सारा जगत विराट शांति में लीन हो जाता है, तब भी उस सन्नाटे में एक ध्वनि सुनाई पड़ती है। वह शून्य का स्वर है। उस क्षण सन्नाटे में जो ध्वनि गूंजती है, उसी का नाम ओंकार है।
वे कह रहे है, मेरे खोने का कोई उपाय नहीं है। मैं मिट नहीं सकता क्योंकि मुझे कभी बनाया नहीं जा गया है। जो बनता है, वह मिट जाता है। लेकिन जो सदा रहता है। यह जो सदा बना रहता है, इसकी जो ध्वनि है, इसका जो संगीत है, उसका नाम ओंकार है। इसलिए यह मत सोचना कि आफ बैठकर ओम-ओम का उच्चारण कर रहें है, तो आपको ओंकार का पता चल रहा है ।
जिस ओंकार का उच्चारण आप कर रहे है। वह उच्चारण ही है वह तो आपके द्वारा पैदा की गई ध्वनि है। इसलिए धीरे-धीरे होंठ को बंद करना होगा। फिर बना होंठ के भीतर ही ओम का उच्चारण करना होगा। लेकिन वह भी असली ओंकार नहीं है। क्योकिं इसमें में हड्डिया और मांसपेशियां काम में लाई जा रही है। उसे भी छोड़ना होगा, तब एक उच्चारण सुनाई पड़ेगा जो आपका किया हुआ नहीं होगा, जिसके आप साक्षी होते है कर्ता नहीं, जिसे आप बनाते नहीं। फिर भी जो होता है उसे सिर्फ आप जानते है।
ओशो
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